ऋषिकेश- सुप्रीम कोर्ट ने भू-राजस्व के रिकॉर्ड में पुजारियों के नाम जोड़े जाने की याचिका पर सुनाया ऐतिहासिक फैसला

त्रिवेणी न्यूज 24
ऋषिकेश – सुप्रीम कोर्ट ने भू-राजस्व के रिकॉर्ड में पुजारियों के नाम जोड़े जाने की याचिका पर सुनवाई करते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। इस फैसले में कोर्ट ने कहा है कि एक पुजारी किसी भी मंदिर की जमीन या सम्पत्ति का मालिक नहीं हो सकता वह सिर्फ एक सेवक की तरह काम करता है। मंदिर की सम्पत्ति का मालिक उसका देवता ही होता है। इसलिए प्रबंधक या पुजारी के नाम का जिक्र स्वामित्व स्तंभ में करने की आवश्यकता नहीं है।
जस्टिस हेमंत गुप्ता व एएस बोपन्ना की बेंच ने कहा कि पुजारी के पास मंदिर या मंदिर की सम्पत्ति केवल प्रबंधन के लिए ही होती है। वह सिर्फ देवता की जगह पर उस मंदिर में काम करता है। चूंकि देवता का नाम कानून में विधि सम्मत है इसलिए भू राजस्व के रिकॉर्ड में देवता के नाम ही मंदिर की सम्पत्ति रखी जाए। सुप्रीम कोर्ट ने इसके साथ ही भू-राजस्व के रिकॉर्ड से पुजारियों के नाम हटाने के भी आदेश दिए हैं। कोर्ट ने कहा कि पुजारी उस जमीन की सिर्फ देखभाल करता है। वह सिर्फ एक किराएदार जैसा है। जो भी पुजारी होगा व मंदिर के देवताओं की देखभाल के साथ उससे जुड़ी जमीन पर खेती का काम भी करेगा। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में मध्य प्रदेश के 1959 के सर्कुलर को चुनौती दी गई थी। इसी मामले में सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सर्कुलर को बरकरार रखा है। इस सर्कुलर में पुजारियों के नाम भू राजस्व के रिकॉर्ड से हटाने के आदेश दिए गए थे, जिससे मंदिर की सम्पत्ति को अवैध रूप से बेचे जाने से बचा जा सके। पीठ ने कहा कि इस मामले में कानून स्पष्ट है कि पुजारी काश्तकार मौरुशी, (खेती में काश्तकार) या सरकारी पट्टेदार या मौफी भूमि (राजस्व के भुगतान से छूट वाली भूमि) का एक साधारण किरायेदार नहीं है। उसे औकाफ विभाग (देवस्थान से संबंधित) की ओर से ऐसी भूमि के केवल प्रबंधन के उद्देश्य से रखा जाता है। पीठ ने कहा पुजारी केवल देवता की संपत्ति का प्रबंधन करने के प्रति उत्तरदायी है। यदि पुजारी अपने कार्य करने में, जैसे प्रार्थना करने तथा भूमि का प्रबंधन करने संबंधी काम में विफल रहा तो उसे बदला भी जा सकता है। इस प्रकार उसे भूस्वामी नहीं माना जा सकता।

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