ऋषिकेश- उत्तराखंड में दुबारा होगा नेतृत्व परिवर्तन किसकी खुलेगी लाटरी या लग सकता है राष्ट्रपति शासन

त्रिवेणी न्यूज 24
देहरादून – 2022 के आम चुनाव से पहले सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी सरकार में एक बार नेतृत्व परिवर्तन हो सकता है। इसके पीछे तीरथ सिंह रावत की उपलब्धिया नाकामी नहीं बल्कि संवैधानिक संकट कारण बन रहा है। वर्तमान में सरकार के मुखिया तीरथ सिंह रावत को 9 सितंबर से पहले विधायक बनना अनिवार्य है। अब तीरथ सिंह रावत किस विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ेंगे यह तो बाद का विषय है लेकिन भाजपा एवं सरकार द्वारा जिस तरह से गंगोत्री विधानसभा सीट से उनको उपचुनाव लड़ाने की तैयारी की जा रही है। लेकिन संवैधानिक बाध्यता के चलते वहां पर अब उपचुनाव होना संभव नही लग रहा है। गंगोत्री सीट पर उपचुनाव कराए जाने के रास्ते लगभग बंद हो चुके हैं। संवैधानिक कारण की बात करें तो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 151 ए के तहत गंगोत्री विधानसभा क्षेत्र में अब उपचुनाव नहीं कराया जा सकता है। इस अधिनियम के तहत रिक्त हुई सीट की तिथि से इस विधानसभा के कार्यकाल समाप्त होने की तिथि के बीच 1 वर्ष से कम का समय होने के कारण यहां अब चुनाव नहीं कराया जा सकता है।
भाजपा ने राजनैतिक कारणों से 2007 मैं भी दो मुख्यमंत्री बदले थे यही नौबत दोबारा भी आ सकती है। किस विद्यायक की लॉटरी लग सकती है, यह कौन भाग्यशाली होगा जो इस कार्यकाल का तीसरा सीएम होगा। 22 अप्रैल 2021 को गंगोत्री से भाजपा विधायक गोपाल सिंह रावत के निधन से यह सीट रिक्त हुई थी वर्तमान में चल रहा विधानसभा का कार्यकाल 23 मार्च को समाप्त हो रहा है। 1 वर्ष से कम समय होने के चलते इस विधानसभा सीट पर उपचुनाव नहीं कराया जा सकता है। अब अगर मुख्यमंत्री इस विधानसभा के सदस्य नहीं बन पाएंगे तो उन्हें 9 सितंबर से पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ सकती है। ऐसे में भारतीय जनता पार्टी को नेतृत्व परिवर्तन करना पड़ सकता है या प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाकर बाकी का समय पूरा करना पड़ेगा। संविधान के अनुच्छेद 164( 4) के तहत दी गई शक्तियों से भाजपा ने तीरथ सिंह रावत को बिना किसी सदन के मुख्यमंत्री तो बना दिया लेकिन इसी संविधान की धारा 151 के तहत उन्हें 6 महीने के अंदर सदन का सदस्य बनना भी अनिवार्य था लेकिन अगर वह 9 सितंबर तक सदन के सदस्य निर्वाचित नहीं होते हैं तो उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ सकती है। मुख्यमंत्री के सलाहकारों एवं पार्टी ने उन्हें इस प्रावधान की जानकारी तक नहीं दी होगी नहीं तो वह अल्मोड़ा जिले की सल्ट विधानसभा सीट से उप चुनाव लड़कर अब तक विधायक बन जाते। जबकि राज्य की संसदीय चुनाव प्रभारी समिति ने सल्ट विधानसभा क्षेत्र से प्रत्याशी का नाम तय कर अनुमोदन के लिए केंद्रीय चुनाव समिति को भेज दिया था लेकिन तब किसी ने इस और ध्यान नहीं दिया जिसका खामियाजा मुख्यमंत्री एवं भाजपा को भुगतना पड़ सकता है। यह स्पष्ट करना आवश्यक होगा कि संविधान में विधानसभा के उपचुनाव कराने के लिए लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 150 मैं की गई है लेकिन इसके साथ ही इसी अधिनियम की धारा 151 (क) में समयावधि के बारे में कहा गया है कि धारा 147 धारा 149 धारा 150 एवं धारा 151 में किसी बात के होते हुए भी उक्त धाराओं में से किसी में निर्दिष्ट किसी रिक्त सीट को भरने के लिए उप निर्वाचन सीट के रिक्त होने की तारीख से 6 माह की अवधि के अंदर कराया जाना आवश्यक होगा। जिसमें 151 क के तहत किसी रिक्त सीट से संबंधित सदस्य की पद पर रहने की अवधि का शेष भाग 1 वर्ष से कम हो अथवा निर्वाचन आयोग केंद्र सरकार से परामर्श करके यह प्रमाणित करता है कि इस अवधि में उप चुनाव कराना कठिन है।
इसीलिए उत्तराखंड में एक बार फिर राजनैतिक नेतृत्व परिवर्तन करना पड़ सकता है अथवा राष्ट्रपति शासन दूसरा विकल्प हो सकता है।
हल्द्वानी मैं भी उपचुनाव सम्भव नही –
इसके साथ ही अगर गंगोत्री विधानसभा का उपचुनाव नहीं होगा तो नेता प्रतिपक्ष डॉ. इंद्रा हृदेश की मृत्यु के बाद खाली हुई हल्द्वानी की सीट पर भी उपचुनाव होना संभव नहीं होगा ऐसे में इन दोनों विधानसभा क्षेत्रों मैं सीधे फरवरी वर्ष 2022 में विधानसभा के आम चुनाव होंगे।

%d bloggers like this:
Breaking News