ऋषिकेश -बाढ़ और भूस्खलन का हॉटस्पॉट बना उत्तराखंड, IIT रुड़की की रिपोर्ट में खुलासा
त्रिवेणी न्यूज 24
देहरादून _ हिमालयी राज्यों में हाल ही में आई विनाशकारी प्राकृतिक आपदाओं को देखते हुए भारत के दिग्गज संस्थान आईआईटी रुड़की ने पहली बार प्रदेश में जिला-वार अध्ययन रिपोर्ट छापी है। रिसर्च में उत्तराखंड में भूकंप और भूस्खलन के खतरे का व्यापक विश्लेषण किया गया है। रिपोर्ट कहती है कि राज्य के कई हिस्से बड़े पैमाने की आपदाओं के प्रति संवेदनशील हैं। दो जिलों को सबसे ज्यादा संवेदनशील पाया गया है। रिपोर्ट में रुद्रप्रयाग को सबसे संवेदनशील जिला बताया गया है, इसके बाद पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी का नाम शामिल है। अध्ययन के अनुसार हिमालय की नाजुक भौगोलिक संरचना, तीखे पहाड़ी ढलान और भारी मानसूनी वर्षा इन क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं के खतरे को कई गुना बढ़ा देते हैं। रिपोर्ट में बताया गया है कि उत्तराखंड में भूस्खलन की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। भूकंप के समय, मिट्टी में नमी और ढलान की अस्थिरता बड़े पैमाने पर तबाही मचा सकती है। अध्ययन में पीक ग्राउंड एक्सेलेरेशन (PGA) का उपयोग कर यह आकलन किया गया कि भूकंप के दौरान भूस्खलन कैसे होंगे। परिणाम बताते हैं कि भूकंप-प्रेरित भूस्खलन सामान्य ढलान अस्थिरताओं की तुलना में कहीं अधिक खतरा पैदा करते हैं।
केन्द्रीय उत्तराखंड में अलकनंदा और मंदाकिनी नदी घाटियों में स्थित रुद्रप्रयाग जिला अपने तीखे पहाड़ी ढलानों और भूकंपीय गतिविधि के इतिहास के कारण सबसे अधिक जोखिम में है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार मानसून के दौरान हर साल भूस्खलन बढ़ जाते हैं। केवल 2023 में ही 200 से अधिक घटनाएं दर्ज हुईं, जिससे सड़कें बंद हुईं और दर्जनों लोगों की जान गई। 2013 की केदारनाथ त्रासदी ने पहले ही इस क्षेत्र में संभावित तबाही का पैमाना दिखाया था। पिछले महीने ही उत्तरकाशी में भी बादल फटने के कारण भूस्खलन हुआ, जिसमें सैलाब जैसे पानी ने होटल और होमस्टे बहा दिए, घर मलबे में दब गए और व्यापक बचाव अभियान चलाया गया।
सरकार की चेतावनी और तैयारी
रिपोर्ट जारी होने के बाद राज्य सरकार ने सभी एजेंसियों, जिला प्रशासन, पुलिस और आपदा प्रतिक्रिया टीमों को हाई अलर्ट रहने का निर्देश दिया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि किसी भी आपदा की स्थिति में प्रभावित लोगों को हर संभव सहायता दी जाएगी। राहत और बचाव दल 24 घंटे तैयार रहें।
