ऋषिकेश- गुरु पूर्णिमा पर ऋषिकेश के आश्रमों में देश-विदेश से आये लाखों की संख्या में शिष्यों ने किया गुरु पूजन

त्रिवेणी न्यूज 24
ऋषिकेश- तीर्थ नगरी ऋषिकेश के तमाम आश्रमों में देश विदेश से आए लाखों शिष्यों ने गुरु पूर्णिमा पर अपने गुरुओं की पूजा अर्चना कर गुरु मंत्र लिया, वही जीवन में सुख समृद्धि का आशीर्वाद भी प्राप्त किया।
बुधवार को जयराम आश्रम के पीठाधीश्वर ब्रह्मा स्वरूप ब्रह्मचारी ने गुरु और शिष्य के बीच के संबंध को समझाते हुए कहा कि गुरु ही ब्रह्मा, गुरु ही विष्णु, गुरु ही शिव और गुरु ही परमब्रह्म है; ऐसे गुरुदेव को हमेशा याद रखें । अखण्ड मण्डलरूप इस चराचर जगत में व्याप्त परमात्मा के चरणकमलों का दर्शन जो कराते हैं; ऐसे गुरुदेव को नमस्कार है। उन्होंने कहा कि गुरुमूर्ति का ध्यान ही सब ध्यानों का मूल है, गुरु के चरणकमल की पूजा ही सब पूजाओं का मूल है, गुरुवाक्य ही सब मन्त्रों का मूल है और गुरु की कृपा ही मुक्ति प्राप्त करने का प्रधान साधन है। ‘गुरु’ शब्द का अभिप्राय जो अज्ञान के अंधकार से बंद मनुष्य के नेत्रों को ज्ञानरूपी सलाई से खोल देता है, वह गुरु है। जो शिष्य के कानों में ज्ञानरूपी अमृत का सिंचन करता है, वह गुरु है। जो शिष्य को धर्म, नीति आदि का ज्ञान कराए, वह गुरु है। जो शिष्य को वेद आदि शास्त्रों के रहस्य को समझाए, वह गुरु है। उन्होंने गुरु पूजा के बारे में बताया कि गुरुपूजा का अर्थ किसी व्यक्ति का पूजन या आदर नहीं है वरन् उस गुरु की देह में स्थित ज्ञान का आदर है, ब्रह्मज्ञान का पूजन है।
_ जनार्दन आश्रम दंडी बाडा के केशव स्वरूप ब्रह्मचारी ने कहा कि आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन सभी अपने-अपने गुरु की पूजा विशेष रूप से करते हैं। यह सद्गुरु के पूजन का पर्व है, इसलिए इसे गुरुपूर्णिमा कहते हैं। जिन ऋषियों-गुरुओं ने इस संसार को इतना ज्ञान दिया, उनके प्रति कृतज्ञता दिखाने का, ऋषिऋण चुकाने का और उनका आशीर्वाद पाने का पर्व गुरुपूर्णिमा‌है। यह श्रद्धा और समर्पण का पर्व है। गुरुपूर्णिमा का पर्व पूरे वर्षभर की पूर्णिमा मनाने के पुण्य का फल तो देता ही है, साथ ही मनुष्य में कृतज्ञता का सद्गुण भी भरता है।
_ मायाकुंड स्थित कृष्ण कुंज आश्रम में उत्तराखंड पीठाधीश्वर स्वामी कृष्णाचार्य की पूजा अर्चना हजारों लोगों ने श्रद्धा पूर्वक की वही तारा माता मंदिर में संध्या गिरी महाराज की भी पूजा अर्चना की स्वर्ग आश्रम स्थित गीता आश्रम में ब्रह्मलीन महामंडलेश्वर वेदव्यासानंद, और शांतानंद, हरिहर तीर्थ में स्वामी प्रेमानंद, के शिष्यों ने गुरु पूजन किया।

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