ऋषिकेश- उत्तराखंड की यमुना घाटी में मिला इतिहास का खजाना

त्रिवेणी न्यूज 24
ऋषिकेश- यमुना घाटी में इतिहास का एक ऐसा खजाना मिला है, जिससे पता चलता है कि उत्तराखंड का संबंध कभी सिंधु घाटी की सभ्यता से रहा है।
उत्तराखंड में जगह-जगह समृद्ध इतिहास के सबूत बिखरे पड़े हैं। जिन्हें सहेजने की जरूरत है। हाल ही में यहां यमुना घाटी में इतिहास का एक ऐसा खजाना मिला है, जिससे पता चलता है कि उत्तराखंड का संबंध कभी सिंधु घाटी सभ्यता से रहा है।
दरअसल उत्तरकाशी जिले के बर्नीगाड क्षेत्र में पाषाण निर्मित महिषमुखी चतुर्भुज मानव प्रतिमा मिली है। प्राचीन प्रतिमा की खोज का श्रेय दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र को जाता है। जिसकी पहल पर पुरातत्व इतिहास के शोधार्थियों ने उत्तरकाशी के देवल गांव में महिषमुखी चतुर्भुज मानव प्रतिमा खोज निकाली। शोधार्थियों का कहना है कि यह प्रतिमा सिंधु घाटी सभ्यता और उत्तराखंड के पारस्परिक संबंधों को रेखांकित करती है।
इस प्रतिमा को सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त ‘आदि शिव’ की प्रतिमा से जोड़कर देखा जा रहा है। दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के शोधार्थी एवं इतिहासकार प्रोफेसर महेश्वर प्रसाद जोशी कहते हैं कि यमुना घाटी में पहले भी सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़े अवशेष मिल चुके हैं। कालसी में सम्राट अशोक के शिलालेख, जगतग्राम व पुरोला में ईंटों से बनी अश्वमेध यज्ञ की वेदियां मिली हैं। लाखामंडल में देवालय समूह प्रसिद्ध है। किसी भी क्षेत्र विशेष की समृद्ध ऐतिहासिक विरासत को गहराई से समझने के लिए पुरातात्विक साक्ष्य, भाषा व जेनेटिक विज्ञान का गहन अध्ययन जरूरी है। दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के प्रयास से उत्तराखंड हिमालय के इतिहास, पुरातत्व, समाज व संस्कृति से जुड़े अन्य पहलुओं को उजागर करने का प्रयास किया जा रहा है।

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